आवारा पशुओं के लिए कोई सरकारी समाधान नही है ,सरकारें चुनाव के समय वादे तो खूब करती है लेकिन उन वादों को निभाना चाहती ही नही है । इसका जीता जागता उदाहरण है कांग्रेस की मध्यप्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री श्री कमलनाथ ने वोट ही इस आधार पर मांगे । ग्रामवासियों को आवारा पशु गाय जो धार्मिक आस्था का केंद्र है उसके लिए हर ग्राम पंचायत में गोशालाओं का निर्माण करने की हर भाषण में घोषणाएं की गई लेकिन सरकार के बाद मुख्यमंत्री श्री कमलनाथ जी ने किसानों और उनकी गायों को भी बेसहारा छोड़ अनाथ बना दिया । और आज तक एक गोशाला भी प्रदेश में नही खोल सकी कांग्रेस की मध्यप्रदेश सरकार । खैर आपको किसी की आप बीती एक कहानी बताते हैं।
#वन_विभाग,
#पेंच_राष्ट्रीय_उद्यान
आओ दोस्तो आपको आज बताते है कि, पर्यावरण के समीप सामान्य जीवन सुगम तो है लेकिन सुरक्षित नहीं ।
कहा जाए तो पर्यावरण कि ७०% रक्षा जिनके हाथों है ऐसा है हमारा प्यारा वन विभाग । जंगलों जानवरों और पर्यावरण का आप भले ही खास खयाल रखने में कोई कमी न छोड़ते हों, सुना है, एक शेर मर जाता है तो रेंजर का ट्रांसफर हो जाता है । जानवरों को डिस्टर्ब न हो इसीलिए हाईवे में अरबों रुपए के ओवर ब्रिज बनाए जा रहे है, लेकिन जंगलों के आस पास के सामान्य जन जीवन की खैर खबर लेते रहा करिए वन विभाग देवता!
आप की लापरवाही के चलते बहुत सी खेती, जन धन का नुक़सान हो जाता है , उसके जिम्मेदार आप नहीं होते है क्या ? कुछ दिन पहले पेंच नेशनल पार्क में अपने ही खेत में २-४ किसानों को शेर घायल कर गया और एक नवजवान के शिर और शाखाएं छोड़ कर सब खा गया । अभी आस पास के गांव में कहर कम सुनाई दे रहा है, शायद आपने इसपर काम किया होगा ।
लेकिन एक जमाने से किसानों की खेती को नील गाय , हिरण , बंदर, जंगली सूअर खा जाते है, अरे इनको समझाओ की पेस्टीसाइड खा कर ये जल्दी मर जाएंगे !!! अगर किसान खासकर सूअर से खेती बचाने को करेंट लगा दे, तो खेत के मालिक को जुर्माना और जेल , लेकिन सूअर आदमी को घायल कर जाता है तो उनके पालक वन विभाग को भी जेल नहीं होती क्या !!! अरे बकरे मुर्गे बैल काटे जाते हैं रोज़ तब आप जानवरों की रक्षा क्यू नहीं करते ?? हद का दोगलापन है भाई!!
यहां तक कि किसान हजारों खर्च कर के फेंसिंग लगता है खेत के आस पास और ये जानवर जमीन के नीचे से गड्ढा कर के खेत में घुस जाते है कभी गाय बैल से भिड़ जाते है तो कभी किसान से ही भिड़ जाते है।
अब इनकी भी गलती नहीं ये तो १ से १२ होते है सीधे ; आलम ये है कि गांव के अंदर भी इनका कहर नजर आता है । जंगल वालों हमें इंसान ज्यादा कीमती है आपकी बड़े दांत और लंबे मुंह वाली सूअर से, इनको आप जंगल के अंदर पालो नाम जंगली और कहर डोमेस्टिक ऐसा थोड़े ही होता है ।
इस विषय पर मेरी आज आंखे खुली क्यूं कि, कल शाम ६-७ बजे मै अपने ही घर के पीछे भोजन के बाद टहलने निकली तो ये वराह देवता बिना मतलब मुझ पर फुं फं फुस... करते हुए दौड़ पड़े !! जैसा कि मुझे पता है, कि इनके दौड़ते समय तुरंत मुड़ने में इनका बस नहीं चलता इनके दोबारा प्रहार के पहले सुरक्षित हो जाना आपका बचाव कर सकता है, नहीं तो आपको कहां इनके खीस गड़ जाएं और आप कब ईश्वर को प्यारे हो जाओ कोई भरोसा नहीं, तो वराह देवता की दौड़ के लगभग १००° एंगल में मै दौड़ कर अपने घर के अंदर पहुंच गई । और आज जिंदा हूं आप सबको बताने के लिए की ये भी एक पहलू है असुरक्षा का ।
खैर किसान भाई बहनों ये सरकारी लोग आपकी जान की कीमत नहीं समझ पाएंगे इसीलिए आपको पता होना चाहिए कि किस जानवर से कैसे बचा जा सकता है ।